BA Semester-1 Hindi Kavya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2639
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य

अध्याय - 18
कबीरदास

(व्याख्या भाग)

(क) गुरुदेव को अंग

सतगुरु सवान को सगा, सोदी सई न दाति।
हरिजी सवॉन को हितू, हरिजन सई न जाति ॥ 1 ॥

सन्दर्भ - प्रस्तुत दोहा श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित कबीरदास के खण्ड 'गुरुदेव कौ अंग' से उधृत है, जिसके रचनाकार कबीरदास हैं।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी डा. श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित ग्रंथ 'कबीर ग्रन्थावली में संकलित 'गुरुदेव कौ अंग' से ली गई है। इस साखी में सद्गुरु के महत्व एवं उसकी अनन्त महिमा के साथ प्रभु- भक्त को सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ बताया गया है।

व्याख्या - कबीरदास जी कहते हैं कि संसार में सद्गुरु के समान अपना कोई भी निकट सम्बन्धी नहीं है तथा शोधक या साधु जैसा कोई दान करने वाला नहीं है: दाता नहीं है अर्थात् सद्गुरु अनुकम्पापूर्वक शिष्यों की विषय-वासनाओं का शोधन करता है और अज्ञानान्धकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश उसके अन्तस में भरता है। इस संसार में ईश्वर (हरि) के समान कोई हितैषी नहीं है; क्योंकि वह बिना किसी भेदभाव के सर्वहितकारी है, सबका हितचिन्तक है तथा हरि-भक्त-तुल्य कोई अन्य जाति नहीं। तात्पर्य यह है कि प्रभु भक्त सभी जातियों में सर्वश्रेष्ठ होता है।

विशेष - 1. प्रस्तुत साखी में सद्गुरु, साधु, ईश्वर और भक्त को विशिष्ट महत्व दिया है।
2. प्रथम पंक्ति में अनुप्रास अलंकार दर्शनीय है।
3. साधना के क्षेत्र में सद्गुरु का महत्व प्राचीन काल से चला आ रहा है क्योंकि सद्गुरु कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग की ओर जाता है।

गुरुदेव को अंग

पीछे लागा जाइ था, लोक वेद के साथि
आगै थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि।।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग  - इस दोहे में कबीर को सतगुरु मिलने की बात कही गई है।

व्याख्या - कबीर कहते हैं कि मैं बिना किसी सोच-विचार के लोक और वेद के पीछे चला जा रहा था। आगे मुझे सतगुरु मिल गया। उन्होंने ज्ञान रूपी दीपक मेरे हाथ में रखा जिससे मेरी अन्धानुकरण की प्रवृत्ति समाप्त हो गयी।

प्रस्तुत साखी में कबीर के भक्त होने से पूर्व की स्थितियों पर प्रकाश पड़ता है। यदि वे सतगुरु से भेंट होने से पूर्व लोकाचारों एवं वेद मार्ग के अनुयायी थे तो इससे सिद्ध होता है कि वे हिन्दू थे। सतगुरु के ज्ञान दीपक को पा लेने के बाद कबीर ने स्वानुभूति का महत्व समझा। इस नए आलोक में उन्होंने लोकाचारों तथा वेद विहित मान्यताओं का पुनर्निरीक्षण किया और अपने समाज में जितना अपेक्षित था उतना स्वीकार कर शेष को नकार दिया।

विशेष - दीपक में रूपकातिश्योक्ति तथा दीपक- दिया में छेकानुप्रास अलंकार का विधान है।

माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि इवै पड़ंत।
कहै कबीर गुरु ग्यान थैं, एक आध उबरंत ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी ने माया में फँसे मनुष्य को बाहर निकालने के लिए सच्चे गुरु द्वारा ज्ञान प्राप्ति का वर्णन किया है।

व्याख्या - माया दीपक के समान है और मनुष्य पतंगे के समान है। जिस प्रकार पतंगा दीपक की ओर बार-बार आता है और उस पर प्रेमवश अपना जीवन न्यौछावर कर देता है उसी प्रकार मनुष्य भी विषय-वासनाओं में फँसकर भ्रमवश उसी पर गिरता है अर्थात् अपना जीवन नष्ट कर लेता है लेकिन, कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु से ज्ञान प्राप्त करके कोई एकाध व्यक्ति ही माया के बंधन से ऊपर उठ सकता है अर्थात् विषय-वासनाओं के चक्कर में नहीं फँसता।

विशेष -1. रूपक अलंकार का स्वाभाविक प्रयोग,
2. माया के प्रभाव को उल्लिखित किया है।

चौसंठि दीगा जोई करि, चौदह चन्दा माँहि
तिहिं धरि किसको चानिगौ, जिहि धरि गोविंद नाँहि ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

व्याख्या - यदि कोई व्यक्ति 64 कलाओं में प्रवीण होकर चौदहों कलाओं में प्रवीण होकर, चौदहों विद्याओं में अपने अज्ञान अंधकार को दूर करना चाहे तो भी उसे सफलता नहीं मिल सकती, क्योंकि जिस स्थान पर भगवान नहीं होंगे वह स्थान कभी प्रकाशित नहीं हो सकता।

पीछें लागा जाय था, लोक वेद के साथि
आगे थैं सतगुरु मिल्या, दीपक दीया हाथि।।

सन्दर्भ - प्रस्तुत साखी डॉ. श्यामसुन्दर दास द्वारा सम्पादित ग्रन्थ 'कबीर ग्रन्थावली से संकलित गुरु देव कौ अंग से लिया गया है।

प्रसंग - इस साखी में सतगुरु के मिलने की बात कही गयी है।

व्याख्या - कबीर कहते हैं कि मैं बिना किसी सोच-विचार के लोक और वेद के पीछे लगा चला जा रहा था। आगे से मुझे सतगुरु मिल गये थे और उन्होंने ज्ञानरूपी दीपक मेरे हाथ में दे दिया जिससे मेरी अन्धानुकरण की प्रवृत्ति समाप्त हो गयी।

प्रस्तुत साखी में कबीर से भेंट होने से पूर्व लोकाचारों तथा वेदमार्ग के अनुयायी थे तो इससे सिद्ध होता है कि वे हिन्दू थे। सतगुरु के ज्ञान दीपक पा लेने के बाद कबीर ने स्वानुभूति का महत्व समझा। इस नये आलोक में उन्होंने लोकाचारों तथा वेदविहित मान्यताओं का पुनर्निरीक्षण किया और अपने समाज के परिप्रेक्ष्य में जितना अपेक्षित था उतना ही स्वीकार किया शेष को नकार दिया।

विशेष- दीपक में रूपकातिश्योक्ति तथा दीपक दीया में छेत्रानुप्रास का विधान है।

(ख) बिरह को अंग

बासुरि सुख नाँ रैजि सुख, नाँ सुख सुपिनै माहिं।
कबीर बिछुटया राम सूँ नाँ, नाँ सुख धूप न छाँह।

सन्दर्भ - प्रस्तुत दोहा श्यामसुन्दर दास द्वारा संपादित कबीरदास के खण्ड 'विरह कौ अंग' से उद्धृत है जिसके रचयिता कबीरदास हैं।

व्याख्या - कबीरदास जी कहते हैं कि राम से वियुक्त लोगों को न तो दिन में सुख मिलता है और न रात में। स्वप्न भी उनके लिए सुखद नहीं होता है। उन्हें धूप और छाया कोई भी सुखदायी नहीं होती है।

आइ न सकौं तुझ पै, सकूँ न तुझ बुलाइ।
जियरा यौंही लेहुगे, बिरह तपाइ तपाइ ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - इसमें आत्मारूपी विरहिणी का वर्णन किया गया है।

व्याख्या - आत्मारूपी विरहिणी कहती है कि मैं तुम्हारे पास आने में असमर्थ हूँ। विरह के कारण मेरा शरीर बहुत क्षीण हो गया है। उसमें इतनी शक्ति नहीं है कि एक लम्बा मार्ग तय करके प्रियतम के पास तक पहुँच सके। मैं इतने दिनों से तड़प-तड़प कर तुम्हारे नाम की रट लगाए हूँ। तुम मेरी दशा पर द्रवित होकर स्वयं आते नहीं हो। जोर जबरदस्ती से मैं तुम्हें बुला नहीं सकती हूँ। ऐसा लगता है कि मेरा और तुम्हारा मिलन नहीं हो पाएगा। जिसकी पूरी जिम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है। क्योंकि विरह की तड़प शांत करने में तुम्हीं पूर्ण सक्षम हो। मुझे प्रतीत होता है कि विरह की आग में तड़पा-तड़पा कर तुम यों ही मेरा प्राण ले लोगे। .

विशेष- (i) इसमें प्रियतम के प्रति उपालम्भ तथा जीवात्मा की सीमित शक्ति की अभिव्यंजना है।
(ii) तपाइ तपाइ में पुनः शक्ति प्रकाश अलंकार का विधान है।
(iii) इस दोहे में एक विरहिणी की मार्मिक वेदना, का उद्घास कबीर ने बड़ी कुशलता से किया है।

यह तन जालों मसि करूँ, लिखौं राम का नाउँ।
लेखणि करूँ करंक की, लिखि लिखि राम पठाऊँ।

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - आत्मारूपी विरहिणी कह रही है।

व्याख्या - मैं चाहती हूँ कि इस शरीर को जलाकर स्याही बना लूँ और हड्डी की लेखनी बनाऊँ, इसी से लिख कर राम के नाम संदेश भेजूँ।

विरहिणी की मिलन की कामना विचित्र त्याग के रूप में प्रकट हुई है। इस तरह के विरह चित्र पर फारसी प्रभाव मानना अनुचित नहीं है। खून, हड्डी आदि के चित्रों में जुगुप्सा की स्थिति है। भारतीय प्रेम चित्रण की परम्परा में इस तरह के प्रतीकों तथा उपमानों का लगभग अभाव है। इसमें कबीर की ईश्वर के प्रति अनन्य निष्ठा की अभिव्यंजना होती है।

विशेष- इस विरह चित्रण पर फारसी प्रभाव है।

सब रंग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त।
और न कोई सुणि सकै, कै साई के चित्त ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।
प्रसंग - आत्मा रूपी विरहिणी अपने शरीर का वर्णन कर रही है।
व्याख्या - आत्मारूपी विरहिणी कहती है कि मेरा शरीर रबाब नामक वाद्य यंत्र बन गया है। मेरी सभी शिराएं उसकी तांत हैं। रबाब को विरह नित्य (प्रेम) का राम बजाता रहता है। इससे निकलने वाले राग को या तो स्वामी सुनता है या साधक का चित्त।
सांगस्पक के द्वारा कबीर ने शरीर के रोम-रोम में व्याप्त विरह को व्यंजित किया है। शरीर से निकला राग अनाहद नाद का सूचक है जिसका श्रवण साधक या स्वामी के अलावा कोई नहीं कर सकता है। ईश्वरीय प्रेम का गहन अनुभव वैयक्तिक है।
विशेष – (i) संगीत वाद्य के बिंब से कबीर ने अनाहद नाद के स्वरूप को सर्वसुलभ बनाने का प्रयास किया है।
(ii) किसी भी कुशल रचनाकार की सृष्टि में उसका युग प्रतीकों और बिम्बों में भी प्रत्यक्ष हो जाता है।

नैनाँ अंतरि आचरूँ, निस दिन निरषौं तोहि।
कब हरि दरसन देहुगे, सो दिन आवै मोहि ॥

सन्दर्भ - पूर्ववत्।

प्रसंग - आत्मारूपी प्रियतमा अपनी उत्कट मिलनोत्कंठा को व्यक्त करती हुयी निवेदन करती है।

व्याख्या - हे भगवान! तुम मेरे नेत्रों के अंदर आ जाओ, जिससे रात-दिन मैं तुम्हारा दर्शन करती रहूँ। मेरे परम सौभाग्य का कौन सा दिन होगा, जब तुम दर्शन देने की कृपा करोगे।  

विशेष - माधुर्य भाव की भक्ति में अभिलाषा और औत्सुक्य को व्यंजित किया गया है।


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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
  3. प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  4. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
  5. प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
  6. प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  7. प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
  9. प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
  10. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  11. प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
  14. प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
  18. प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
  20. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  21. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  22. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  24. प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  25. प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
  26. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  28. प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  29. प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
  30. प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  31. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  33. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  35. प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
  36. प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
  37. प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
  38. प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
  40. प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
  44. प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
  45. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
  47. प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
  48. प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  49. अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
  50. प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  51. प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  53. प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
  54. प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
  55. प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
  56. अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
  57. प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
  58. प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
  59. अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
  60. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  61. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  63. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  64. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  65. अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
  66. प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
  68. प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
  69. प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
  71. प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
  72. अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
  73. प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
  76. प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  77. प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
  81. प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
  82. अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
  83. प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
  84. प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
  86. प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
  87. प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  89. अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  91. प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  92. प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
  93. प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  94. अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
  95. प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
  96. प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
  97. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
  99. अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
  100. प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  101. प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
  102. प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
  104. प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
  105. अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
  106. प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
  107. प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  108. प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
  109. प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
  110. प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
  111. अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  112. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
  113. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  114. प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
  115. प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
  116. अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
  117. प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
  118. प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
  119. अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
  120. प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
  121. प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  122. अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
  123. प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
  124. प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
  125. प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
  126. प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
  128. अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  129. प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
  130. प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
  131. प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
  132. प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
  133. प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
  134. अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
  135. प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
  136. प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
  137. प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
  138. अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  140. प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  141. अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
  142. प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
  143. प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
  144. प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
  145. अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
  146. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
  148. प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
  149. प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  150. प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
  151. अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
  152. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  153. प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
  154. अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
  155. प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
  157. प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।

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